अध्ययन में लेखन का महत्त्व
प्रत्येक व्यक्ति दूसरों पर अपने मन के भावों को प्रकट करने के लिए वाक्य बोलता है। जो व्यक्ति बोलने की कला भली-भाँति जानता है, उसके वाक्यों का दूसरों पर अधिक प्रभाव पड़ता है। बोलने का उत्कृष्ट रूप भाषण या व्याख्यान होता है। इसके लिए अध्ययन और मनन तथा अभ्यास की आवश्यकता होती है। लिखना बोलने से अधिक महत्त्वपूर्ण होता है। बहुत सारे व्यक्ति अच्छा बोल तो लेते हैं; लेकिन अच्छा लिख नहीं पाते। कुछ में दोनों योग्यताएँ होती हैं। लिखने में विशेष कुशलता हासिल करने के लिए अध्ययन, निरीक्षण, भ्रमण, मनन तथा अभ्यास की महती आवश्यकता होती है।
लेखन कला के मूलतः बारह गुण होते हैं-
(1) शुद्धता
(2) सुलेख
(3) मौलिकता
(4) सरलता
(5) मधुरता
(6) रोचकता
(7) लाघव
(8) कल्पना
(9) चमत्कार
(10) व्यंग्य या व्यंजना शक्ति
(11) भावों की प्रबलता
(12) विराम चिह्नों का उचित प्रयोग
लेखन कौशल के उद्देश्य
* वर्णों को ठीक-ठीक लिखना सीखना।
* सुन्दर लेख का अभ्यास करना।
* शुद्ध अक्षर विन्यास का ज्ञान करा।
* वाक्य रचना के नियमों से परिचित होना।
* विचार तार्किक क्रम में प्रस्तुत करना।
* अनुभवों का लेखन करना।
* लिपि, शब्द, मुहावरों का ज्ञान होना।
* वाक्य रचना, शुद्ध वर्तनी, विराम चिन्हों का प्रयोग सिखाना।
* छात्रों को सृजनात्मक शक्ति और मौलिक रचना करने में निपुण बनाना।
बच्चों में लेखन कौशल को डेवलप करने की ये ट्रिक आजमाई हुई है
बच्चों में लेखन कौशल का विकास कैसे किया जाय? कहां से शुरूआत की जाय? हर शिक्षक या अभिभावक के मन में ये प्रश्न रहते हैं। उन्हें लगता है कि मौलिक या रचनात्मक लेखन तो वह खुद नहीं कर पाते हैं, तो बच्चों को उसके बारे में क्या और कैसे सिखाएं?
दरअसल, मौलिक लेखन का संबंध अभ्यास से है। इस दिशा में जितना अधिक अभ्यास किया जाएगा, लेखन में उतना अधिक निखार अएगा। साथ-साथ निरंतर अध्ययन भी जारी रखा जाय। अध्ययन की शुरूआत कथा साहित्य से की जाए। यदि ये दोनों अभ्यास साथ-साथ किए जाय तो आप पाएंगे कि जल्दी ही बच्चों की लिखित अभिव्यक्ति मजबूत होने लगेगी और वह रचनात्मक लेखन की ओर भी बढ़ चलेगा।
हां, यहां एक बात का और ध्यान रखा जाय कि लेखन के दौरान होने वाली वर्तनी और व्याकरण संबंधी त्रुटियों को लेकर बहुत टोक-टोकी न की जाय। ये त्रुटियां अभ्यास के साथ-साथ अपने आप दूर हो जाएंगी। बल इस बात पर हो कि बच्चा खुद को अधिकाधिक लिखित रूप से अभिव्यक्त करे, जिसकी शुरूआत निम्नलिखित बिंदुओं से की जा सकती है-
1- कभी न कभी प्रत्येक बच्चा कोई न कोई यात्रा अवश्य करता है। यह यात्रा गांव से शहर की या शहर से गांव तक की भी हो सकती है। बच्चे से अपनी यात्रा के बारे में लिखने के लिए कहा जा सकता है।
2- आपके क्षेत्र में आए दिन कोई न कोई स्थानीय तीज-त्योहार और मेले आयोजित होते रहते हैं। इनके संबंध में कब, कहां, क्यों, कैसे आदि जानकारियां एकत्र कर उनका वर्णन करने के लिए बच्चों से कहा जा सकता है।
3- बच्चे से प्रतिदिन डायरी लिखने के लिए कहा जा सकता है। डायरी में ये बातें दर्ज की जा सकती हैं कि आज दिनभर उसने क्या हटकर किया या क्या हटकर देखा? उसे क्या अच्छा लगा या बुरा लगा? किन नए लोगों से मिला? आदि।
4- बच्चों को अपने गांव या आसपास के इतिहास,संस्कृति, पर्यटन स्थल, प्रसिद्ध व्यक्तियों के बारे में लिखने के लिए प्रेरित किया जा सकता है। इसी तरह लोकगीतों, लोककथाओं, लोकोक्तियों, ऐंण-पहेलियों, कथा-किस्सों आदि का संकलन भी करवाया जा सकता है।
5- बच्चों से अपने गांव की कहानी लिखने के लिए कहा जा सकता है,
6- अपने क्षेत्र के जाने-माने खिलाड़ियों, लोक कलाकारों-गायक,वादक,नृतक,कथा वाचक सामाजिक-राजनीतिक कार्यकत्र्ताओं, स्वतंत्रा सेनानियों, ऐंपण बनाने, सगुन आंखर व फाग गाने वाली महिलाओं, होली-झोड़ा-चांचरी-खेल आदि लोकगीतों में महंत कीभूमिका निभाने वालों, वैद्य परम्परा के जानकारों तथा अन्य क्षेत्रों के प्रतिभावान व्यक्तित्वों के साक्षात्कार भी लिए जा सकते हैं।
7- अपने गांव,कस्बे,शहर या विद्यालय में आयोजित हुए वाले विभिन्न समारोहों तथा गतिविधियों की रोचक रिपोर्टिंग ।
8- पुस्तकालय से दी गई पत्रिकाओं या पुस्तकों के बारे में बच्चों से अपनी प्रतिक्रिया-कैसा लगा और क्यों लगा? लिखने के लिए कहा जा सकता है।
9- अपने क्षेत्र में प्रचलित हस्तशिल्प और उससे जुड़े व्यक्तियों के बारे में लेखन
10- यदि आपके बच्चे मिट्टी, कपड़े, कागज, लकड़ी आदि से कोई खिलौने या मुखौटे बनाते हैं तो उनके चित्र तथा निर्माण प्रकिया के बारे में विस्तार से लिखवाया जा सकता है।