चुनौतियां ही नया इतिहास लिखती हैं (Challenges make History)

हमारे आस-पास कई नई चीजें हैं। बस हम उन्हें देख

नहीं पाते। प्रकृति हमारे बेहद करीब है। उसके पास तमाम नई चीजें हैं। प्रकृति से हमें कई नई चीजें मिली हैं, जिसने देश के लिए एक नया आयाम लिखा है। साइंस और प्रकृति हमेशा से एक दूसरे के पूरक रहे हैं। साइंस की मदद से समाज की हमेशा बेहतरी हुई है। कुछ इन्हीं शब्दों के बीच राजधानी में बुधवार को रिसर्च इंस्टिट्यूटों में नैशनल साइंस डे मनाया जाता है। इस मौके पर छात्र-छात्राओं को नई खोज करने के लिए प्रोत्साहित किया जाता है। साथ ही साइंस डे पर प्रफेसर सीवी रमन को उनकी सराहनीय और उत्कृष्ट खोज के लिए याद किया जाता है।

देश भर में हर साल 28 फरवरी को प्रफेसर सीवी रमन की जयंती के मौके पर साइंस डे मनाया जाता है।  देश के रिसर्च संस्थान के साइंटिस्टों द्वारा अपनी रिसर्च की प्रदर्शनी लगाकर आम लोगों को जानकारी दी जाती है। साइंटिस्टों की इन खोजों के संबंध में लोगों के अंदर काफी उत्सुकता भी देखने को मिली। स्कूलों में बच्चों ने साइंस प्रतियोगिता में हिस्सा लिया। लखनऊ विश्वविद्यालय में फिजिक्स के प्रफेसर डॉ एमएम वर्मा ने बताया कि प्रकृति से ही साइंटिस्टों को सीखने को मिलता है। उन्होंने कहा कि बच्चे साइंस शिक्षा तो ले रहे हैं लेकिन उन्हें सीखने के लिए प्रैक्टिकल करना बेहद जरूरी है।
भारतीय विषविज्ञान अनुसंधान संस्थान (सीएसआईआर-आईआईटीआर) में साइंस डे के मौके पर प्रदर्शनी का आयोजन किया गया। यहां शहर के विभिन्न संस्थानों के अंडर ग्रैजुएट छात्रों को प्रदर्शनी देखने और संस्थान के प्रयोगशालाओं में आकर वैज्ञानिकों के साथ चर्चा करने के लिए बुलाया गया। निदेशक प्रफेसर आलोक धावन ने छात्रों को संबोधित करते हुए कहा कि तकनीकी महारत हासिल करने के लिए बुनियादी अनुसंधान की जरूरतों पर बल देने की आवश्यकता है।
उन्होंने कहा कि विज्ञान में आगे बढ़ने के लिए लगातार प्रश्न पूछे जाने चाहिए, जिससे हमारे देश में सर सी वी रमन जैसे और भी बन सकें।

जापानियों को तजा मछली खाने का बेहद शौक है. दुर्भाग्य से जापान के आस-पास के पानी में ताजा मछलियाँ कम होती चली जा रही थीं. इस कमी को पूरा करने के लिए मछुवारों की नौकाएं आधुनिक और बड़ी होती जा रही थीं. क्योंकि अब उन्हें मछली पकड़ने के लिए पानी में काफी दूर तक जाना पड़ता था.

मुश्किल यह थी कि, जितनी दूर वे जाते, उतना ही वक्त मछलियां लेकर वापिस आने में भी लगता था.. समय ज्यादा लगने की वजह से मछलियाँ लेकिन कुछ समय बाद लोगों को इतने अधिक समय तक फ्रिजर में रखी हुई मछलियों का स्वाद बदला बदला सा लगता था। उन्हें यह मछलियां भाती नहीं थीं। उसमें ताजगी नहीं थी।

जापानी बुद्धिजीवियों ने इस समस्या का भी हल निकाल लिया। उन्होंने नौकाओं में ही मछली घर बनवा लिए। मछलियों को समुद्र जैसा माहौल दिया। लेकिन इस घर में मछलियां कुछ समय के लिए हिलती थी फिर बेजान हो जाया करती थीं। 

इसके बाद जापानी बुद्धिजीवियों ने और दिमाग लगाया। उन्होंने इस मछली घर में एक छोटी से शार्क डालना शुरू कर दिया। मछलियां अफनी रक्षा के लिए इधर उधर भागती हैं और इस तरह से वह पूरी तरह एक्टिव रहती हैं और बेजान नहीं होतीं। शार्क कुछ मछलियों को खा जरूर जाती हैं लेकिन ज्यादातर मछलियां ताजा हालत में जापान पहुंचती हैं। 

इस स्टोरी से मिलती है ये 3 सीखें 
- हर चुनौती का एक समाधान होता है, इससे जूझने का मजा लें। 
- चुनौतियां जीवन जीने की योग्यता देती है।
- हर मुश्किल ही एक नई सोच, नए विचार और नए आविष्कार को जन्म देती है।
सबसे पहला चरण और सबसे महत्वपूर्ण चरण “शुरुआत" करना है। दूसरा चरण “कारण" ठूँठना है। कारण बहुत बड़ा होना चाहिए। तीसरा चरण “सोच "
है जहां से आप सीखने वाले है।
हम एक आदर्श जगत में नहीं रहते हैं।
सभी एक समान मनुष्य होते हैं जो कभी-कभी अपना कार्य उत्कृष्टता से नहीं दर्शा पाते, यदि यह बात उन्हें पता हो, तो सुधार करने के लिए उन्हें शायद जरा सी ही सहायता की जरूरत पड़ेगी – लेकिन समस्या तब होती है जब उनको  पता नहीं चलता कि वे बेहतर कर सकते हैं ।