आदर्श युवा बने (Be Ideal Person)
युवा ही किसी समाज व देश की नींव होते हैं. युवा शक्ति में इतनी ताकत है कि वे चाहे तो देश को बुलंदियों तक पहुंचा दें. साफ शब्दों में इन्हें देश की रीढ़ की हड्डी भी कह सकते हैं क्योंकि यही युवा देश की प्रगति के आधार हैं और समाज का विकास उन्हीं पर टिका है. इन महत्वाकांक्षी, ऊर्जावान युवाओं के अंदर कुछ भी कर गुजरने का जज्बा होता है।
युवा ने देश को कहाँ से कहाँ पहुँचा दिया है, युवाओं के चलते ही देश ने इतनी तेजी से विकास किया है. लेकिन आज का भारतीय युवा स्वार्थी हो गया है, वो देश की तरक्की के बारे में न सोच कर सिर्फ अपने बारे में सोचता है. भारतीय युवा को अपनी ज़िम्मेदारी को समझना चाहिए।
ऐसे में देश की युवा शक्ति को जागृत करना और उन्हें देश के प्रति कर्तव्यों का बोध कराना अत्यंत आवश्यक है। विवेकानंद जी के विचारों में वह क्रांति और तेज है जो सारे युवाओं को नई चेतना से भर दे। उनके दिलों को भेद दे। उनमें नई ऊर्जा और सकारात्कमता का संचार कर दें। स्वामी विवेकानंद की ओजस्वी वाणी भारत में तब उम्मीद की किरण लेकर आई जब भारत पराधीन था और भारत के लोग अंग्रेजों के जुल्म सह रहे थे। हर तरफ सिर्फ दु्ख और निराशा के बादल छाए हुए थे। उन्होंने भारत के सोए हुए समाज को जगाया और उनमें नई ऊर्जा-उमंग का प्रसार किया।
एक आदर्श युवा सदैव पुस्तकों को ही अपना सबसे अच्छा मित्र समझता। वह पूरी लगन और परिश्रम से उन पुस्तकों का अध्ययन करता है जो जीवन निर्माण के लिए अत्यंत उयोगी हैं। इन उपयोगी पुस्तकों में उसके विषय की पुस्तकों के अतिरिक्त वे पुस्तकें भी हो सकती हैं जिनमें सामान्य ज्ञान आधुनिक जगत के नवीनतम जानकारियां तथा अन्य उपयोगी बातें भी होती हैं।
अगर तुम ठान लो, तारे गगन के तोड़ सकते हो।
अगर तुम ठान लो, तूफान का मुख मोड़ सकते हो।।
कहने का तात्पर्य यही है कि जीवन में ऐसा कोई कार्य नहीं जिसे मानव न कर सके। जीवन में ऐसी कोई समस्या नहीं जिसका समाधान न हो।
जीवन में संयम, सदाचार, प्रेम, सहिष्णुता, निर्भयता, पवित्रता, दृढ़ आत्मविश्वास, सत्साहित्य का पठन, उत्तम संग और महापुरुषों का मार्गदर्शन हो तो हमारे लिए अपना लक्षय प्राप्त करना आसान हो जाता है। जीवन को इन सदगुणों से युक्त बनाने के लिए तथा जीवन के ऊँचे-में-ऊँचे ध्येय परमात्म-प्राप्ति के लिए आदर्श चरित्रों का पठन बड़ा लाभदायक है होता है।
सबसे श्रेष्ठ संपत्तिः चरित्र
चरित्र मानव की श्रेष्ठ संपत्ति है, दुनिया की समस्त संपदाओं में महान संपदा है। पंचभूतों से निर्मित मानव-शरीर की मृत्यु के बाद, पंचमहाभूतों में विलीन होने के बाद भी जिसका अस्तित्व बना रहता है, वह है उसका चरित्र।
चरित्रवान व्यक्ति ही समाज, राष्ट्र व विश्वसमुदाय का सही नेतृत्व और मार्गदर्शन कर सकता है। आज जनता को दुनियावी सुख-भोग व सुविधाओं की उतनी आवश्यकता नहीं है, जितनी चरित्र की। अपने सुविधाओं की उतनी आवश्यकता नहीं है, जितनी की चरित्र की। अपने चरित्र व सत्कर्मों से ही मानव चिर आदरणीय और पूजनीय हो जाता है।
स्वामी शिवानंद कहा करते थेः
"मनुष्य जीवन का सारांश है चरित्र। मनुष्य का चरित्रमात्र ही सदा जीवित रहता है। चरित्र का अर्जन नहीं किया गया तो ज्ञान का अर्जन भी किया जा सकता। अतः निष्कलंक चरित्र का निर्माण करें।"
अपने अलौकिक चरित्र के कारण ही आद्य शंकराचार्य, महात्मा बुद्ध, स्वामी विवेकानंद, पूज्य लीलाशाह जी बापू जैसे महापुरुष आज भी याद किये जाते हैं।
व्यक्तित्व का निर्माण चरित्र से ही होता है। बाह्य रूप से व्यक्ति कितना ही सुन्दर क्यों न हो, कितना ही निपुण गायक क्यों न हो, बड़े-से-बड़ा कवि या वैज्ञानिक क्यों न हो, पर यदि वह चरित्रवान न हुआ तो समाज में उसके लिए सम्मानित स्थान का सदा अभाव ही रहेगा। चरित्रहीन व्यक्ति आत्मसंतोष और आत्मसुख से वंचित रहता है। आत्मग्लानि व अशांति देर-सवेर चरित्रहीन व्यक्ति का पीछा करती ही है। चरित्रवान व्यक्ति के आस-पास आत्मसंतोष, आत्मशांति और सम्मान वैसे ही मंडराते हैं. जैसे कमल के इर्द-गिर्द भौंरे, मधु के इर्द-गिर्द मधुमक्खी व सरोवर के इर्द-गिर्द पानी के प्यासे।
चरित्र एक शक्तिशाली उपकरण है जो शांति, धैर्य, स्नेह, प्रेम, सरलता, नम्रता आदि दैवी गुणों को निखारता है। यह उस पुष्प की भाँति है जो अपना सौरभ सुदूर देशों तक फैलाता है। महान विचार तथा उज्जवल चरित्र वाले व्यक्ति का ओज चुंबक की भाँति प्रभावशाली होता है।