शिक्षा में योग का महत्व (Importance of Yoga in Education)

योग एक मानस शास्त्र है जिसमें मन को संयत करना और पाशविक वृत्तियों से खींचना सिखाया जाता है। जीवन की सफलता, किसी भी क्षेत्र में संयत मन पर भी निर्भर करती है। मन:संयम का अभिप्राय है किसी एक समय में किसी एक ही वस्तु पर चित्त का एकाग्र होना। दीर्घकाल तक अभ्यास करने से मन का ऐसा स्वभाव बन जाता है। किसी विषय को सोचते या किसी काम को करते हुए मन उस पर एकाग्र रहे, ऐसा अभ्यास करना आरंभ में तो बड़ा कठिन होता है, पर जब अभ्यास करते-करते वैसा स्वभाव बन जाता है, तब उससे बड़ा सुख होता है।

ठीक-ठीक और सुसंगत रीति से न सोच सकना या अच्‍छे ढंग से कोई काम न कर सकना, विचार और काम में मन की चंचलता से ही होता है। विद्यार्थी जानते हैं कि मन स्थिर न हो तो कोई बात सीखी नहीं जा सकती और मजदूर जानते हैं कि अस्थिर मन से कोई काम नहीं हो सकता। बहुत से विद्यार्थी जो प्रतिवर्ष विश्वविद्यालय की परीक्षाओं में फेल हुआ करते हैं, इसका कारण यही है कि अध्ययन में मन को एकाग्र करने की शक्ति ही उनमें नहीं होती। यही बात सांसारिक विषयों में होने वाली विफलताओं की है। जब तक मनुष्य अपने विचारणीय विषय या करणीय कार्य में तन्मय नहीं होता, तब तक उसे उसमें सफलता मिल ही नहीं सकती।
मन के इस विशिष्ट धर्म से योगशास्त्र के प्रणेता ने धार्मिक क्षेत्र में भी काम लिया है। योग स्वयं कोई धर्म संप्रदाय या धर्मविषयक तत्वज्ञान नहीं है, प्रत्युत यह संसार के सभी धर्मों और तत्वज्ञानों का सहायक है। इसे किसी धार्मिक सिद्धांत का प्रचार नहीं करना है। संसार के सभी धर्म वालों को इसके द्वारा यह शिक्षा मिलती है कि किस प्रकार अपनी-अपनी धर्मविषयक बातों में मन को एकाग्र करने से शांति और आनंद प्राप्त होता है।
पातंजल योग सूत्रों में जिस विषय का मुख्यतया प्रतिपादन किया गया है, वह है 'चित्तवृत्तिनिरोध' अर्थात अन्य विषयों से चित्त को खींचकर एक ही विषय में एकाग्र करना।
'स्वस्थ शरीर में ही स्वस्थ मन रहता है', यह सिद्धांत सर्वमान्य है। लौकिक और पारलौकिक दोनों ही प्रकारों के प्रयासों की सफलता के लिए स्वस्थ शरीर इसीलिए आवश्यक है। योग शिक्षा में आहार-विहार के नियमों का पालन अत्यंत आवश्यक है।
विद्यार्थी वर्ग के लिए कुछ महत्वपूर्ण योग
ताड़ासन,वृक्षासन और बकासन
ताड़ासन

 

 

 

 

 

 

ताडासन संस्कृत के शब्द "ताड" से लिया गया है जिसका अर्थ "पर्वत" और आसन का अर्थ है "मुद्रा" । इस आसन में शरीर पहाड़ की तरह देखता है इस लिए इस ताड़ासन कहते है । यह आसन सभी आसनों की जड़ है, क्योकि इससे अन्य आसन बने हैं।
वृक्षासन

सीधे खड़े होकर दायें पैर को उठा कर बायें जंघा पर इस प्रकार रखें की पैर का पंजा नीचे की ओर तथा एड़ी जंघाके मूल में लगी हुई हो। दोनों हाथों को नमस्कार की स्थिति मे सामने रखिए। इस स्थिति में यथाशक्ति बने रहने के पश्चात इसी प्रकार दूसरे पैर से अभ्यास करें।
बकासन

अंग्रेज़ी से अनुवाद किया गया कॉन्टेंट-बकासन, और इसी तरह के काकासन हठ योग और आधुनिक योग में व्यायाम के रूप में आसन को संतुलित कर रहे हैं। सभी विविधताओं में, ये आर्म बैलेंसिंग पोज़ होते हैं, जिसमें हाथों को फर्श पर लगाया जाता है, ऊपरी बांहों पर पिंडली होती है और पैर ऊपर उठते हैं।
योगसूत्रों में यौगिक जीवन का यह फल है। यह सांप्रदायिक नहीं है। न इसमें अंधविश्वास की कोई बात है। यह सबका उपकारक प्रत्यक्ष योग है अतः हमें युवा वर्ग को स्वस्थ और सफल बनाने के लिए योग का महत्व बताना चाहिए जिससे संयत जीवन के साथ सफलता अर्जित कर सके।