एजुकेशन मिरॉर - अवर लाइब्रेरी
ज्ञान की अधिष्ठात्री देवी सरस्वती की विधिवत उपासना के लिए दो आराधना मंदिर है एक विद्यालय और दूसरा पुस्तकालय। विद्यालय में हम गुरुजनों के पवित्र वाणी से तथा पाठ्य पुस्तकों के सहारे शिक्षा ग्रहण करते हैं, परंतु फिर भी विद्यालय में हमारी ज्ञान वृद्धि एक निश्चित सीमा तक ही होती है। दूसरे प्रकार के ज्ञान के लिए सरस्वती के दूसरे आराधना मंदिर में बैठकर मोन उपासना करनी पड़ती है। वह साधना स्थल पुस्तकालय हैं, जहां विद्यार्थी विस्तृत व्यापक ज्ञान प्राप्त करता है, जहां सरस्वती के अनंत पुत्रों की कृतियों का संग्रह होता है,जहां उसे सभी प्रकार के ग्रंथ सरलता और सुगमता से उपलब्ध हो जाते हैं जिनके अध्ययन से मानव अपने जीवन की अशांत, संघर्षमय चरणों में शांति प्राप्त करता है।
कहते हैं किताबें इन्सानों की सबसे अच्छी दोस्त होती हैं. जैसे व्यक्ति अपने दोस्त का हर पल, हर घड़ी, हर मुश्किल में साथ देते हैं, वैसे ही किताबें भी हर विषम परिस्थिति में मनुष्य की सहायक होती है. किताबों में हर मुश्किल सवाल, परिस्थिति का हल छुपा होता है. इंसान किसी भी दुविधा में रहे, किताबों को पढ़ने से, समझने से उसकी सोच का विस्तार होता है. कुछ लोग किताबें पढ़ने के शौकीन होते हैं. उन्हें तरह तरह की किताबों को संग्रह करना अच्छा लगता है।
एक शांत कमरा, ढेर सारी किताबें, कई लोग, फिर भी चुप. कुछ याद आया ? जी हाँ ! मैं बात कर रही हूँ किताबों से भरे उस कमरे की जिसे “पुस्तकालय” या “Library” कहते हैं. अपने स्कूल या कॉलेज के दौरान हम सभी कई बार पुस्तकालय गए होंगे।
पुस्तकालय के उद्देश्य
विद्यालय के पुस्तकालय स्थापित करने के निम्नलिखित उद्देश्य हैं-
1.छात्रों के लिए विविध साहित्य की क्रम ब्रदर्स व्यवस्था करना।
2.छात्रों में स्वास्थ्य साहित्य के अध्ययन के प्रति रुचि जागृत करना।
3.छात्रों में स्वाध्याय तथा मौन वाचन की आदतों का विकास करना।
4.छात्रों के ज्ञान को व्यापक बनाने के साधन जुटाना पाठ्य पुस्तकों के अलावा अन्य संबंधित पुस्तकें पत्र-पत्रिकाओं आदि की व्यवस्था करना।
5.शिक्षकों के लिए उच्च स्तरीय साहित्य की व्यवस्था करना।
6.छात्रों के लिए शब्द भंडार बढ़ाने के लिए शब्दकोश तथा अतिरिक्त ज्ञान बढ़ाने के लिए संदर्भ पुस्तके जुटाना।
7.कक्षा में दी गई सामान्य सूचना में अभिवृद्धि करना तथा पुस्तकों को सही ढंग से प्रयोग करना सीखना।
8.छात्रों को स्वतंत्र तथा मौलिक चिंतन करने का प्रशिक्षण प्रदान करना।
पुस्तकालय से लाभ-
विद्यालय में अच्छे पुस्तक का होना अत्यंत आवश्यक है। पुस्तक के महत्व की चर्चा करते हुए माध्यमिक शिक्षा आयोग लिखना है, “व्यक्तिगत कार्य, समूह- प्रयोजन कार्य, शैक्षणिक व मनोरंजन कार्य तथा पाठ्यक्रम सहगामी क्रियाओं के अच्छे तथा दक्ष पुस्तकालय का होना आवश्यक है। छात्रों की सूचियों का विकास, उनके शब्द भंडार का वर्धन तथा कक्षा में अर्जित ज्ञान की वृद्धि करना – यह सब इस बात पर निर्भर है कि छात्रों को पुस्तकालय में कितने साधन उपलब्ध हैं,और अनेक लाभ हैं।
1.छात्रों को अतिरिक्त अध्ययन सामग्री सरलता और सहजता के साथ उपलब्ध हो जाती हैं।
2.अच्छे पुस्तकालय छात्रों में अध्ययन संबंधी स्वस्थ आदतों का विकास करते हैं।
3.पुस्तकालय अवकाश के समय का सदुपयोग करने के अच्छे साधन है।
4.छात्रों के व्यापक दृष्टिकोण का विकास होता है।
5.पुस्तकालय छात्रों को पुस्तकों के उचित प्रयोग का प्रशिक्षण कर देते हैं। पुस्तकालय से ही वे वह सीखते हैं कि पुस्तकों को ठीक प्रकार से किसी प्रकार रखा जाए।
6.छात्र में मौन पाठ की आदत का विकास होता है।
पुस्तकालय उन मूल्यवान पुस्तकों की व्यवस्था करते हैं,जिन्हें अध्यापक या छात्र स्वयं करें नहीं कर सकते हैं।
7.छात्रों में स्वास्थ्य साहित्य पढ़ने की आदत का विकास होता है।
8.पुस्तकालय से आधुनिक साहित्य का परिचय प्राप्त होता है।
9.यहां एक ही समय पर अध्ययन हेतु अनेक पुस्तकें उपलब्ध हो जाती हैं।
पुस्तकें मनुष्य की सर्वश्रेष्ठ एवं सर्वाधिक विश्वसनीय मित्र हैं । इनमें वह शक्ति है जो मनुष्य को अंधकार से प्रकाश की ओर ले जाती है तथा कठिन से कठिन समस्याओं के निदान के लिए बल प्रदान करती है । जिस व्यक्ति को पुस्तकों से लगाव है वह कभी भी स्वयं को एकाकी व कमजोर अनुभव नहीं कर सकता है । पुस्तकें मनुष्य के आत्म-बल का सर्वश्रेष्ठ साधन हैं ।
महान देशभक्त एवं विद्वान लाला लाजपत राय ने पुस्तकों के महत्व के संदर्भ में कहा था:
” मैं पुस्तकों का नर्क में भी स्वागत करूँगा । इनमें वह शक्ति है जो नर्क को भी स्वर्ग बनाने की क्षमता रखती है ।”